Monday, April 4, 2016

इश्क़ के चर्चे।

इश्क़ के चर्चे अब सुनाता बहुत है
बेवजह वो शख्स अब मुस्कुराता बहुत है

दूर से लौट जाता था सुनकर महफ़िल-ए-ग़ज़ल
खुद मोहब्बत के नगमें अब गुनगुनाता बहुत है

हाथ की लकीरों पर कभी यकीन ना था
किस्मत का सितारा अब जगमगाता बहुत है

संभलकर चलने की आदत थी उसकी
राह के हर मोड़ पे अब डगमगाता बहुत है

संगेमरमर तराशने का हुनर था उसका
हर काम में हाथ अब कंपकंपता बहुत है

इश्क़ के चर्चे अब सुनाता बहुत है
बेवजह वो शख्स अब मुस्कुराता बहुत है

-स्वप्निल जोसफ

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