Saturday, April 2, 2016

याद नहीं।

धुंधली तसवीरें, नकली ख़त अब याद नहीं
कब किया आखरी आदाब, याद नहीं

किताबों में रक्खे मुस्कुराता था कभी
कहीं पड़ा होगा सूखा गुलाब, याद नहीं

शिकायत थी उन्हें हमारे रूठ जाने की
कितना अजीब था वो अंदाज़, याद नहीं

मैंने नींद में लिखी थी कुछ संगीन ग़ज़लें
कैसा था मेरा झूठा ख़्वाब, याद नहीं

मुखौटे बदलने की भी एक हद होती है
कौनसा था उसका आखरी नक़ाब, याद नहीं

-स्वप्निल जोसफ

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