Friday, April 1, 2016

मैं कहाँ जाऊं!

लहर चली है धुंए की, मैं कहाँ जाऊं!
झूठी परछाईं है साथ, मैं कहाँ जाऊं!

हवा चली है तेज़ कोई तूफ़ान आने को है
अभी गिरी है दीवार-ए-मकां, मैं कहाँ जाऊं!

कोई कहे मेरे साथ, कोई कहे मेरे साथ
है बड़े असमंजस में हाथ, मैं कहाँ जाऊं!

मुझे होश से ज़्यादा नशा लुभाता था
बहुत महँगी हुई शराब, मैं कहाँ जाऊं!

दूर-दूर तक किनारे नज़र नहीं आते
टूटी है मेरी नाव की पतवार, मैं कहाँ जाऊं!

-स्वप्निल जोसफ

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