जब हर किसी के सिर के ऊपर,कच्ची सी एक छत रहे
नन्हे हाथों में सभी के, खिलौनों की भरमार रहे
हो सके हर बात ऐसी, तो कहो आज़ाद हो तुम।।
भूखे हैं आज भी कितने, देख ज़रा ठहरकर कभी
हर थाली में अनाज की, अब ना कोई दरकार रहे
हो सके हर बात ऐसी, तो कहो आज़ाद हो तुम।।
लड़ रहे हैं आपस में ही, बात समझ ये आती नहीं
हाथ मिलाने को बढ़ो सब, अब ना कोई तकरार रहे
हो सके हर बात ऐसी, तो कहो आज़ाद हो तुम।।
है कहीं जो रोक रही है -एक दीवार ऊँची सही
ख़त्म करो हर बात को यूँ, ना अब कोई तलवार रहे
हो सके हर बात ऐसी, तो कहो आज़ाद हो तुम।।
-स्वप्निल जोसफ
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