Sunday, June 14, 2015

है सितम ये साथ में मेरे।

है खता ना तेरी ना मेरी
है सज़ा का मंज़र ये कैसा
है कहीं जज़बात अधूरे
है सितम ये साथ में मेरे।।

है उजाले साफ़ कहीं पे
है कहीं बेदाग़ सवेरे
है कहीं हर बात सुनहरी
है भरम ये साथ में मेरे।।

ले चले मुझको ये खींचे
तेरी तरफ क्यों लेके ये छोड़ें
तू मिलेगा साथ वहीँ पे
मेरे करम हैं साथ में मेरे।।

किस कमी से दिल ये गुज़रे
किस कदम पे दम ये निकले
किस कदर यूँ टूट के बिखरे
ऐसे सनम हैं साथ में मेरे।।

कर सके ना दूर तुझको
ना कर सके मजबूर मुझको
चल पड़े हैं इश्क़ के रस्ते
अब हो खत्म ये साथ में तेरे।।

-स्वप्निल जोसफ

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