हर आइनों के धुंधले चेहरों से,
सर्द हवा के उन पहरों से,
तू बेखबर थी, बेखबर रहेगी।।
इन सन्नाटों की गूंजती आवाज़ों से
दिल के मकां की दीवारों से
तू बेखबर थी, बेखबर रहेगी।।
समेट ले चाहे हर ज़ख्म यहाँ का
गहरे ज़ख्म की हर दवाओं से
तू बेखबर थी, बेखबर रहेगी।।
मत सोच किस दर्द से गुज़रता है अब वो शख्स
उन आँख से सरकते हर अश्क़ों से
तू बेखबर थी, बेखबर रहेगी।।
सीख ले ज़माने से इश्क़ चाहे जितना,
मेंरे इश्क़ की हर वफाओं से,
तू बेखबर थी, बेखबर रहेगी।।
-स्वप्निल जोसफ
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