ग़र इश्क़ दे, बेहिसाब दे.. हक़ दे, मंज़ूरी दे..
हौसला भी दे, हिम्मत दे..
न दे सके तो भी क्या!!
तुझे सब खुदा ही कहेंगे।
शब् भर के इंतज़ार को सही
हो सके तो चाँद का इक दीदार दे
ना दे सके तो भी क्या!!
तुझे सब खुदा ही कहेंगे।।
है जुनूँ भी अब दास्तां लिखने का
हिस्से में पल-दो-पल की ख़ुशी दे
न दे सके तो भी क्या!!
तुझे सब खुदा ही कहेंगे।
-स्वप्निल जोसफ
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