।।नफ़रतें।।
रूठा जहां है, रूठी हैं सांसें
रोता समां है, रोती हैं मंज़िलें
हवाएँ रुकी हैं, नदियां थमी हैं
आसमाँ है काला, काली घटा है
बढ़ती जहां में...... नफ़रतें।।
काला लहू है बहता, दिल हैं पत्थर के
प्यार में दुश्मनी है, दुश्मनी में खून
जानवर से लगते हैं, आदमी ये सारे
टपकते हैं खून बनके, आंसू जहां के
आईने में देखो, धुंआ ही धुंआ है
कफ़न में लिपटी, आदमी की जान है
चारों दिशा में, सूना समां है
नशे में चूर हैं सब, आदमी कहाँ है
एक ये ज़मीं है, ऊपर से पत्थर
नीचे दफ़न है, ज़िंदा सी लाशें
बढ़ती जहां में....नफ़रतें।।
खोखले से जिस्म हैं ये, रेत के घरोंदे
चीखती आवाज़ों में भी, रोती एक माँ है
आग में बदलती, छोटी एक चिंगारी
कौन हूँ मैं? कौन है तू? पूछता जहां है
खून हैं करते, खून के रिश्ते
प्यार कहाँ है? इश्क़ कहाँ है?
रात है काली, दिन कहाँ है?
बढ़ती जहां में...नफ़रतें।।
लड़ाई है सारी, मरता है तू
मरे भी कौन, जबकि लड़ता है तू
बनाया है उसने, ऊपर है वो ही
देखता है वो भी, बर्बादी यहाँ है
नरक ही नरक तो है, स्वर्ग कहाँ है?
बारूद के जहां में, कांपती एक रूह है
कहीं वो मैं हूँ, कहीं वो तू है
काला जहां है, बेरंग समां है
बदल दो जहां को, आदमी यहाँ है
तू ही तो सब है, फिर तू कहाँ है?
बढ़ती जहाँ में... नफ़रतें।।।
-by
Swapnil Joseph
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