Saturday, April 5, 2025

रातों में मुझे सोने देना, जगाना नहीं

 

रातों में मुझे सोने देना, जगाना नहीं 
ख्वाबों में तू मेरे ज़्यादा, आना नहीं 


नहीं है इश्क़ तो बोल और रिहा कर 

झूठ बोल के तसल्ली दिलाना नहीं 


तेरी आँखें कम नहीं मेरे लिए जाल हैं 

मैं फँसता हूँ हर बार पर अब फँसाना नहीं 


तेरी हर बेरहमी के क़िस्से याद हैं मुझे 

मैं गिना तो सकता हूँ पर अब गिनाना नहीं 


गिरा हूँ तेरी नज़रों में तो गिरा रहने दे 

तू हाँथ बढ़ा देना पर उठाना नहीं 


मेरी मौत हो तो क़ातिल तू ही होगा 

ये अपनी बात है किसीको बताना नहीं 


तेरे दिल में मेरा भी एक घर है, उसे रहने दे 

नए मकाँ खड़े कर लेना पर उसे गिराना नहीं 


तू आज भी हथेली पर एक नाम लिखता है 

ये सबको बताना पर किसीको पढ़ाना नहीं 


-स्वप्निल जोसेफ़

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