Wednesday, November 20, 2024

नफ़रत क्या समझेगा

गलतफहमी में ना रह तेरी हसरत क्या समझेगा 

वो जो प्यार नहीं समझा नफ़रत क्या समझेगा 


रोएगा, बिलखेगा, तड़पेगा, कहेगा की मैं तेरा हूँ 

ये उसकी झूठी आदत है तू आदत क्या समझेगा 


तू ने सर झुकाया, तवक्कुल की, तू ने सराहा 

छोड़ उसे वो खुदा नहीं इबादत क्या समझेगा 


ए अहबाब! उसकी लुग़त में लफ़्ज़-ए-तस्दीक़ नहीं 

वो जो है संग-दिल है तेरी चाहत क्या समझेगा 


बेरहम तोड़ता है काँच सा हर बार तेरा दिल 

वो शख़्स गुस्ताख़ है तेरी शराफ़त क्या समझेगा 


-स्वप्निल जोसेफ़ 

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