अपने साये से वो भाग रहा होगा
अंधेरे कमरे में वो जाग रहा होगा
मिटाने में उसे एक उम्र लगी है
कितना गहरा ज़ख्म-ए-दाग रहा होगा
आसानी से जो गुनगुनाया ना गया
संगीत का मुल्तानी राग रहा होगा
वो अब किसी पर ऐतबार नहीं लाता
उसकी आस्तीन में कभी नाग रहा होगा
सूखने पर भी उसकी महक कायम है
एक गुलाब नहीं, वो कभी बाग़ रहा होगा
...अपने साये से वो भाग रहा होगा...
-स्वप्निल जोसफ
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