Friday, July 8, 2016

दिख रहा है।

दिन के उजालों में काला घनेरा, दिख रहा है
बादलों ने यूँ सूरज को घेरा, दिख रहा है

चहकती हुई शाम और पंछियों की बोली
ढलता हुआ दिन का पहरा, दिख रहा है

कशिश सी उठी है इस शाम के आँगन में
सुलगती आँच में धुंधला सा सेहरा, दिख रहा है

कोई होश संभाले कोई बेहोशी संभाले
क्यों हुआ है बदनाम अँधेरा, दिख रहा है

सबकी मानें तो हर बात ही सच है लेकिन
किसका है कितना झूठा चेहरा, दिख रहा है

कहने को तो सारी कायनात है मेरी अपनी
कौन है जान का असली गुनहगार मेरा, दिख रहा है

-स्वप्निल जोसफ

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