बहुतों की कटी है उम्र तनहा ही अब तक
कहीं कोई आवारा दिल मिल जाए
इस बात से डर लगता है।
तमाम उम्र जिस ख्वाब को देखकर जिये
इक टूटे कांच की तरह ना बिखर जाये
इस बात से डर लगता है।।
तलाश अभी बाकी है उस दफ़्न से एक राज़ की
कहीं घर के आँगन में ना मिल जाए
इस बात से डर लगता है।।
कहे काफ़िर ज़माना मुझे, कि है खुदा अभी दिखा नहीं
तेरे इश्क़ में ना मुझे खुदा मिल जाए
इस बात से डर लगता है।।
बदनसीबी भी क्या करे जब नसीब ठिकाने रहते नहीं
यूँ आसानी से हर चीज़ मिल जाए
इस बात से डर लगता है।।
-स्वप्निल जोसफ
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