तमाशों में तलाशता एक अदाकार बना बैठा है
ये इंसान भी कितना कलाकार बना बैठा है।।
धुँए में ढूँढो तो खो भी सकते हो 'मुसाफिर'
ज़माने में ऐसा भी कौन, वफादार बना बैठा है।।
होश में रहोगे तो हर कोई शक करेगा तुम पर
यहाँ तो इन्सां नशे का, तलबगार बना बैठा है।।
तुम सोचते हो तो सोचते ही रह जाओगे
किस ज़ुर्म में वो दीवाना गुनहगार बना बैठा है।।
यूँ पलटकर ना देखा कर तू जाते इन रस्तों पर
मेरे नाम का तेरे नाम से समाचार बना बैठा है।।
हवाओं के रुख को बदलते यूँ देर नहीं लगती
मौत का यहाँ हर कोई अब, गिरफ्तार बना बैठा है।।
-स्वप्निल जोसफ
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