ज़िन्दगी को अब बदनाम लिए फिरते हैं
दुआ ना सही हम सजदे में झुका करते हैं ।।
कभी रोका होता तो जान लेते
हम अक्सर हर आवाज़ पे रुका करते हैं।।
पंख फैलाये इन परिंदों से सीखो
बेख़ौफ़ ये कैसे आसमान में उड़ा करते हैं।।
शराब कहीं, कहीं रंजिश में ग़ुम हो
तुम झूठ कहो, हम नज़रों से पहचान लिया करते हैं।।
फासलों से सीखा है जीना हमने, वरना
वक़्त के साथ लोग, हर वक़्त मरा करते हैं।।
अब दुश्मनी में क्या रखा है जनाब
हमारी आस्तीन में अक्सर सांप पला करते हैं।।
हिसाब करोगे तो वाजिब लगाना सौदा
कम दामों में हमारे जज़्बात बिका करते हैं।।
-स्वप्निल जोसफ
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