रोते हुए भी इक आँसू में समंदर समेटा है
क्यों इस शाम की हवाऐं भी नाराज़ हैं
यह बात समझ नहीं आती, यह बात समझ नहीं आती॥
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चलते चलते दो कदम पर, रहनुमा पर, रहगुज़र पर
क्यों आँखे है मेरी थम जाती
यह बात समझ नहीं आती, यह बात समझ नहीं आती॥
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चंद सिक्कों में खरीद रखा है, ज़माने को अमीरों ने
गरीब की जान एक निवाले को तरस जाती
यह बात समझ नहीं आती, यह बात समझ नहीं आती॥
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यूँ तो बिछड़े हुए एक ज़माना बीता, खयालों से तेरी यादों का सहारा बीता
फिर सन्नाटों से तेरी आवाज़ क्यों आती
यह बात समझ नहीं आती, यह बात समझ नहीं आती॥
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देखा है बहुत खुशियाँ जहां की, जादू ज़मीं पर, चांदनी आसमां की
पर बारिश की बूँदें क्यूँ तेरी याद दिलाती
यह बात समझ नहीं आती, यह बात समझ नहीं आती॥
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कयूँ रह गए, अजनबी थे, अजनबी बनके,
दूरियों में फांसलों के हमनशीं बनके
क्यूँ धड़कनें हैं अब, मेरे दिल को बहलाती
यह बात समझ नहीं आती, यह बात समझ नहीं आती॥
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चरागों से पूछो, हवाऐं क्या सितम करती हैं, गुनहगारों से पूछो सज़ाएं क्या सितम करती हैं
हर शख्स की आंखें, हैं कुछ राज़ छुपाती
यह बात समझ नहीं आती, यह बात............॥
by- Swapnil Joseph
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