किसी मुसाफिर को सही राह दिखाना कठिन है
रुककर के अब मेरा शहर से फिर जाना कठिन है
कभी कातिल भी ठहरे थे मेरे घर में आकर
अब इस अदालत से ज़ुर्म छुपाना कठिन है
शराफत का ज़माना कुछ और था जनाब पहले
हर किसीको अब सब सच बताना कठिन है
एक बेसब्र सा आलम रुका है मेरे नसीब में
पहले जैसे मज़बूत रिश्ते निभाना कठिन है
कोई तो बात है जो तुझे काफ़िर बना रही है
खुदा के सजदे में तेरा सर झुकाना कठिन है
फासले रखने में भी मुझे एक सुकूँ सा मिला है
वरना, यूँ ही किसी से बेवजह मुकर जाना कठिन है
क्यों ना दिल की जगह अब दिमाग लगाया जाए
अपने आप को अब झूठे ख्वाब दिखाना कठिन है
-स्वप्निल जोसफ
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